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जीवन को समझने और समझाने के सबके अलग-अलग माध्यम होते है। मेरे लिए वो माध्यम मेरे शब्द है। मेरी इस वेबसाइट पर आपको विभिन्न स्वरचित कविताये और लेख मिल जायेगे जो जीवन दर्शन, प्रेरणा, सामाजिक विडंबनाओं और शिक्षा से जुड़े होंगे। पढ़ते जाये – बढ़ते जाये -जीवन में कुछ करते जाये।

Trending Posts:

प्यार

मैंने तुमसे प्यार किया है, इसमें मेरी खता नहीं।
पर कितना प्यार किया है तुमसे, इसका मुझको पता नहीं।। हर पल ही घूमा करता था, गात तेरा चूमा करता था।
किसने लगन लगाई इतनी, इसका मुझको पता नहीं।। दरिया सागर छोटे पड़ ...

संदोह

अल्पता से स्वल्पता तक आ गया हूं।
अल्पना से कल्पना तन छा गया हूं।
अब बीतते हैं रात दिन सब रीते रीते।
हर सांस में कुछ तरह समा गया हूं।। झाड़ियों को पा मिला सुकून मुझको।
नागफनियों ने डसा था खूब मुझको। है
अब नहीं ...

होली

होली में ऐसो रंग डालो, अबकि मेरे यार।
रंग प्रेम को कबहुं उतरे, ऐ मेरे भरतार।। ऐसो रंगियो रंग न उतरे,
तन-मन सब रंग जाए।
चाहे कितना जतन करे कोई,
रंग उतर न पाए।
पल-पल आवे याद तुम्हारी,
मुझको बारंबार।। बर्छी तिरछे नयनों वाली,
हरदम सीने बीच ...

सच्चा दोस्त

जो एक मीठा दर्द और ख़ुशी का एहसास हो जो हरदम कभी दूर तो कभी पास हो जिसकी याद में मन कभी खुश तो कभी उदास हो वही तो होता है जीवन में सच्चा मित्र सच्चा दोस्त जो दूर रहकर ...

जिन्दगी और मौत

कितनी अजीब है ये जिन्दगी
जो कि हर पल
मौत के साथ
आंख मिंचौली खेलती रहती है।
कितनी मासूम है ये पगली
जिसे ये भी नहीं पता
कि वो
कभी किसी की सगी नहीं हुई।
उसने हमेशा ही सबको छला है
इस पर
कब जोर किसका चला है।
और ये बेवकूफ
उसको ...

चार दिन की ज़िंदगानी

जब जिंदगानी चार दिन की रह गई।
किस लिए अब फासले मिटाते हो।।
रहने दो दीवार अब यूं ही खड़ी।
किस लिए इसे आप अब गिराते हो।।
एक ये ही तो बनी पहचान है।
प्यार की अविरल हमारे आपके।।
रहने दो इसको खड़ी हूं ही सदा।
किसलिए ...
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‘अनाम रिश्तों की कोख’- मानस सरोवर कहानी संग्रह – भाग 1 (Hindi Edition) रामगंगा की तलहटी में बसे चौबारी ग्राम जिसका कि मूल नाम चारद्वारी था, जो कि लगभग आज से तीन सौ वर्ष पूर्व वहाँ के मुखिया एवं शासक रहे कुँवर राघवेन्द्र प्रताप सिंह के आलीशान हवेली नुभा राजमहल के चारों दिशाओं में सुन्दर प्रवेशद्वार स्थित होने के कारण इस क्षेत्र का नाम चर्तुद्वारा पड़ा। इसे लोग चारद्वारी भी कहते थे। शनैः शनैः इसका नाम चर्तुद्वारा और चारद्वारी से ...
केरल के ग्रामीण इलाके में हाथियों के झुंडों का आना-जाना एक आम बात थी। आए दिन वे टोलियों के रूप में यहां से वहां भ्रमण करते रहते। हर एक झुंड की खासियत ये थी कि वह अपने परिवार के मुखिया के इशारे पर चलता और एक-एक संकेत का पूर्णत: पालन करता था। अक्सर ग्रामीण उनके झुंड को देखकर परेशान हो जाते क्योंकि उन्हें अपने खेत-खलिहान की चिंता सताने लगती। परंतु हाथियों के झुंड की भी एक खासियत ये थी कि ...

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