‘शकुंतला-देवी’ से सीखिए अपने सपनो को महत्त्व देना

‘शकुंतला-देवी’, ये शब्द सुनकर आपके मन में एक छवि उभर के ज़रूर आयी होगी। किसकी ? जी हाँ आप बिलकुल सही है आप,अदाकारा ‘विद्या बालन’ की।

अमेज़न प्राइम वीडियो की पेशकश ‘शकुंतला देवी’ फिल्म 31 जुलाई, 2020 को रिलीज़ हुई जिसका प्रचार कंपनी काफी दिनों पहले से ही कर रही है क्योकि ये मूवी अमेज़न प्राइम डेज के दौरान पेश की जा रही है। अमेज़न प्राइम डेज ,जो की अमेज़न का एक वार्षिक कार्यक्रम होता है जिसमे बहुत ही आकर्षक ऑफर्स और नए प्रोडक्ट लांच का लाभ प्रथमतयः अमेज़न प्राइम मेंबर्स को मिलता है।

चलिए वापस अपने मूल विषय यानि की ‘शकुंतला देवी’ फिल्म की बात कर लेते है। एक छोटे से गांव की एक लड़की जिसने अपनी अद्भुद बुद्धिमत्ता के दम पर न केवल अपना बल्कि समस्त भारतवर्ष का नाम रोशन किया और ‘मानव कंप्यूटर’ की उपाधि प्राप्त की। इन सबके बाद भी बाद भी आगे जाकर उन्हें अपनी ही बेटी और पति से उल्हना सुनने को मिलती है जो उन्हें पूरा तोड़ देती है। अब भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में एक महिला का आगे बढ़ना सबकी आंख में खटकता तो है ही। पति तो एक बार को सहयोग कर भी लेता है क्योकि वो आपकी प्रतिभा को समझता है और उसने संसार की ठोकरे खाके ये सिख भी लिया है की संसार में अपना नाम कामना कोई आसान बात नहीं और उतना बड़ा नाम जितना शकुंतला की ने कमाया विश्व भर में, वो तो लाखो करोड़ो में कोई एक की बिरला अर्जित कर पता है। फिर दिक्कत कहा आ सकती है , शायद आपका ये सवाल हो सकता है।

एक कहावत तो सुनी ही होगी अपने –“इंसान दुनिया में किसी के सामने भी टिका रह सकता है , लेकिन अपने बच्चे से वो हार ही जाता है।” और ऐसा कही से भी प्रतिभा की कमी की वजह से नहीं होता बल्कि उस प्रेम की वजह से होता है जो माँ- बाप में ‘वात्सल्य रस’ के रूप में उद्दीपन पैदा करता रहता है। इनके साथ भी यही हुआ।

बेटी को माँ का दुनिया से अलग होना और हटकर जीना पसंद न आया और उसने अपने मन मुताबिक अपना जीवन साथी चुन एक नया संसार बसाया और कसम खाई की वो अपनी माँ की तरह कभी नहीं बनेगी। ये वही कसम थी जो कभी उसकी माँ शकुंतला देवी ने अपनी माँ के लिए खायी थी क्योकि उन्होंने अपनी माँ को पिता के गलत फैसलों को भी चुप-चाप मानते हुए देखा जो उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आता था। तो देखा जाये तो कहानी गोल गोल घूम रही है जो की वास्तविक दुनिया को चित्रित करता है की अपनी समस्याओ से भागने का कोई फायदा नहीं क्योकि भाग के भी हम उसी समस्या की ओर ही जा रहे है। बेहतरी इसी में है की जब समस्या आये तो उसी काल खंड में उसका निवारण कर लिया जाये क्योकि समय निकलने के बाद शरीर में उस समस्या से लड़ने की ऊर्चा नहीं बचेगी। तब रोने के सिवाय कुछ नहीं किया जा सकेगा।

फिल्म के दूसरे चरण में जब शकुंतला देवी को अपनी बेटी से विरह का आघात मिला तब उन्हें अपनी अम्मा की याद आयी और वो अपने पुराने घर गयी जहाँ पुराने सामान के बक्से में उन्हें जो चीज़े मिली (उनकी अब तक की वो तस्वीरें जो अखबारों में छपी थी) जिसने उनको उनकी गलती का एहसास कराया की किस तरह उन्होंने अपनी माँ को इतने सालो तक नहीं समझा क्योकि उन्होंने अपनी अम्मा को बस माँ की तरह देखा और कभी कोशिश नहीं की कि एक औरत की तरह भी उन्हें समझा जाये।

हम सब भी अक्सर अपने रिश्तो में यही गलती करते है और अपनी मूर्खता से उसको तहश नहश कर डालते है।

शकुंतला जी को ये बात भली प्रकार समझ आ गयी और उन्होंने बेटी के सामने ये बात दिल खोल के रख दी और सब सही हो गया।

मुझे जो बात सबसे अच्छी लगी वो है शकुंतला जी का खुद को लेके प्यार। एक प्रसिद्ध ‘गणितज्ञ’ को जीवन के किसी भी पड़ाव में उन्होंने अपने से दूर होने नहीं दिया। बेटी होने के बाद उन्होंने कुछ महीनो के लिए विश्राम लिया भी लेकिन मन में संख्याओं का विचरण होता रहा। फिल्म में एक लाइन आयी – “एक माँ के लिए उसके बच्चे से बढ़ कर कुछ नहीं होता। उसकी परवरिश करना ही उसका परम धर्म होता है। “ इस बात ने मेरे मन को हिला कर रख दिया। क्यों एक औरत माँ बनने के बाद बस माँ ही बन कर रह जाती है और अपनी एकल पहचान खो देती है , फिर चाहे वही बच्चे नौकरी या शादी के कारण अपने आप उस माँ’ से विदा ले उसको अकेला छोड़ जाते है। कभी सोचा है 20-25 सालो तक जिस औरत का जीवन बस अपने बच्चो के चारो ओर ही घूमता रहा हो उससे एक दिन वो धुरी ही दूर कर दी जाये। सोचिये अब क्या करेगी वो माँ , कितनी उदासीनता , कितनी कुंठा मन में घर कर जाएगी एक ही साथ जब वो पीछे मुड़ के देखेगी और अपने बच्चे की यादो के अलावा कुछ न देख पायेगी। ऐसे में उसका साथ कौन देगा। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी जीवन संगीनी को समझे और उनके सपनो को साकार करने में उनकी सहायता करे। उनके पूरे होने ही शर्त रखना भी कोई ज़रूरी नहीं है क्योकि कुछ अनसुलझे सवाल ही अक्सर जीने के नए मायने दे जाते है और अगर पूरा हो जाये तो सोने पर सुहागा।

जानता हूँ की ये कहना आसान है लेकिन करना बहुत मुश्किल क्योकि मैंने खुद ये अनुभव किया है। मेरी पत्नी ने जब मेरे सामने एक ऐसा ही प्रस्ताव रखा जहाँ उसने दूसरे शहर में खुद नौकरी करने की पेशकश रखी। मेरे पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गयी। मन में सारे वो ख्याल आने लगे जो एक पिता को आते होंगे जब उसका बेटा /बेटी कही पहली बार बाहर जाकर काम की शुरुआत करता है और यहाँ तो मेरे 2 साल के बेटे का भी सवाल था। यही आम तौर पर आप सब भी महसूस करेंगे यदि नौकरी पेशा किसी काम में नाम कमाना चाहते होंगे। वो तो ईश्वर का शुक्र है की मैं आईटी इंडस्ट्री से जुड़ा हूँ और हम बनिया है। तो एक तो हमे अपना काम करने से अच्छा कुछ लगता नहीं और दूसरा आज के ज़माने में ऑनलाइन पैसे कमाने से आसान और कम पैसो में स्टार्ट होने वाला कोई काम है ही नहीं। इसी लिए हमने उस काम का चयन किया।और ऐसा मैंने अकेले ने नहीं किया। मेरे बहुत से शादीशुदा मित्रो की भी यही कहानी है बस काम अलग अलग है। ऐसे कामों और कहनियों के लिए धैर्य बनाये रखे। जल्द ही मैं उनको भी साझा करूँगा। रास्ते निकल ही आते है बस समझ बना के रखिये एक दुसरे के बीच।

याद रखे हमारा बच्चा कोई बोझ नहीं है हम पर बल्कि वो तो हमारी छवि है जो हमारे बाद दुनिया को हमारी याद दिलाता रहेगा। लेकिन उसके लिए पहले हमे कुछ ऐसा करना तो होगा न की हमे याद रखने पर लोगो को और खुद हमारे बच्चो को हम पर गर्व महसूस हो। वैसे भी आज कल तो लोग ज़िंदा आदमी को बिना मतलब याद नहीं रखते और मैं तो यहाँ मरने की बाद की बात कर रहा हूँ। अपने बच्चे को बड़ा करे लेकिन अपने हर कर्म में उसका विचार करना भी गलत है क्योकि हमारे कर्म हमारी शिक्षा दीक्षा पर निर्भर करता है जो कम से कम 20 से 25 सालो तक हमने गृहण की है। केवल एक बच्चे के होने से उस सोच को मार देना न केवल खुद के लिए अक्षम्य अपराध है बल्कि उस बच्चे के लिए भी एक अभिशाप है क्योकि उसको जो जीवन दर्शन एक गणितज्ञ , एक वैज्ञानिक, एक इंजीनियर, एक डॉक्टर, एक बैंकर , एक प्रशासनिक अधिकारी या किसी भी एक क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले व्यक्तित्व से मिल सकता था -एक माँ- पिता के रूप में , अब वो उसे बाहर से प्राप्त करना पड़ेगा जो इतना प्रभावी नहीं होता। देखा ही होगा अपने कैसे एक इंजीनियर के बेटे को कल-पुर्जो और मशीनों से डर नहीं लगता और वो दिल खोल के उसका परिक्षण करता है और उससे हो सकने वाले नए आयाम तराशता है क्योकि उसको पता है की उसके पास एक ऐसा इंसान है जो उसकी सारी गलतियों को सुधारने के लिए और उसे एक्सपर्ट एडवाइस देने के लिए। यही तकरीबन हर क्षेत्र के साथ संभव है। आइये प्रण ले की खुद के सपनो को पूरा करेंगे ताकि अपने बच्चे को एक आजीवन साथ रहने वाली प्रेरणा प्रदान कर सके।

आपका साथी,
विवेक।

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