हथनी की हाय

केरल के ग्रामीण इलाके में हाथियों के झुंडों का आना-जाना एक आम बात थी। आए दिन वे टोलियों के रूप में यहां से वहां भ्रमण करते रहते। हर एक झुंड की खासियत ये थी कि वह अपने परिवार के मुखिया के इशारे पर चलता और एक-एक संकेत का पूर्णत: पालन करता था।


अक्सर ग्रामीण उनके झुंड को देखकर परेशान हो जाते क्योंकि उन्हें अपने खेत-खलिहान की चिंता सताने लगती। परंतु हाथियों के झुंड की भी एक खासियत ये थी कि वो केवल अपनी क्षुधाभर ही खाते और चुपचाप वन की ओर लौट जाते।


नन्हें बच्चे हाथियों के झुंड को देखकर किलकारियां मारते और छत की मुंडेरों पर चढ़कर तालियां पीटते। उनके शोर मचाने और तालियों की आवाज को सुनकर हाथियों के झुंड में आए हाथियों के बच्चों के कान खड़े हो जाते और वे भी अपनी नन्हीं सूंढ़ें ऊपर कर उनके स्वर में स्वर मिलाकर चिंघाड़ते।

बच्चों की खुशियां देखकर जहां गांव वाले प्रसन्न होकर उन्हें खेतों में खाने देते तो वहीं हाथी भी अपने बच्चों को खुश देखकर बिना नुकसान किए खा-पीकर खेत से विदा हो जाते।


इसी प्रकार दिन बीतते चले गए। नन्हें बच्चे बड़े हो गए और उधर नन्हें हाथी भी बड़े होकर परिवार वाले हो गए। उनमें एक मादा हाथी थी जो बहुत ही छोटेपन से इस गांव में आ रही थी, वह अब बड़ी हो चुकी थी परंतु अपना बीता बचपन उसे अब तक याद था।

वह अक्सर ही जब गांव से लौटती तो गांव की छतों पर चढ़े बच्चों की ओर चली आती और अपनी सूंड़ उठाकर उनका अभिवादन कर उनका प्रेम स्वीकार करती। उसकी इस प्रक्रिया में अब नए झुंड के छोटे हाथी भी हिम्मत कर उसके साथ गांव में अंदर तक चले आते।

एक दिन किसी ने उस हथिनी के गांव में अंदर तक आकर बच्चों की ओर सूंढ़ बढ़ाने पर एक बड़ा सा अन्नानास उसकी ओर बढ़ा दिया। चूंकि अक्सर ही गांव के बच्चे कुछ न कुछ अपनी ओर से उसकी ओर बढ़ा देते थे तो हथिनी ने बड़े ही सहज भाव से उस अन्नानास को प्रेम से ग्रहण कर अपने मुख में रख लिया।

बस उस अनानास को मुख में रखना क्या हुआ कि हथिनी एकदम बड़े जोर से भागी। एक ही सांस में वह सीधी गांव के दूसरे छोर तक जा पहुंची। वहां पहुंचकर भी जैसे उसे चैन नहीं मिला वह फिर वापस उसी रास्ते से गांव के भीतर की ओर भागी।

उसके साथ आए नन्हें हाथियों को उससे इस अप्रत्याशित व्यवहार की आशा न थी, वे उल्टे पैर जंगल की ओर भाग लिये। परंतु हथनी गांव में ही इस छोर से उस छोर तक दौड़ती रही। गांव के बच्चे यही समझते रहे कि यह हथिनी कोई खेल कर रही है। आज अन्नानास खाकर प्रसन्न हो इधर से उधर दौड़ लगा रही है। परंतु हथनी की दौड़ सहज नहीं थी।

हथिनी बड़ी व्याकुलता के साथ दौड़ रही थी। ग्रामीण जब तक कुछ समझ पाते वह जोर-जोर से चीखने लगी। उसकी हृदय विदारक चिंघाड़ सुनकर ग्रामीणों को जब किसी अनिष्ट की आशंका होने लगी तो उन्होंने आपस में कुछ सलाह की और हथनी की ओर चल दिए।

हाथ में उन्हें अपनी और आता हुआ देखकर गांव के बाहर की ओर भागी। भागते हुए उसके पांव के नीचे आते आते कई बच्चे बचे क्योंकि वह उन्हें लांगती हुई गांव से बाहर बने गहरे तालाब की ओर जा पहुंची।

जब तक ग्रामीण इकट्ठे होकर उसके पास पहुंचे वह तालाब के गहरे दलदल में बीचों-बीच आ खड़ी हुई। वहां पहुंचकर भी जैसे उसको शांति नहीं मिली। वह उस दलदल में जोर-जोर से हिलने और चिंंघाड़ने लगी।

ग्रामीणों ने सलाह करके रस्सियाँ मंगवाई और उसे दलदल से बाहर निकालने की चेष्टा करने लगे लेकिन उनका कोई प्रयास काम नहीं आया रात सिर पर आ गई ग्रामीण हिम्मत हार कर पौ फटने काआसरा लिए अपने-अपने घरों को चल दिए जितने मुंह थे उतनी ही बातें हो रही थी पर समझ में किसी की भी कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर कार ऐसा क्यों हो गया।


उधर हथनी के साथ आए हाथियों के छोटे बच्चों ने जंगल में जब यह खबर हाथियों के झुंड को दी तो वे सारे के सारे इकट्ठे होकर उस तालाब के किनारे आ पहुंचे रात भर हाथियों ने उसे बाहर निकालने की कोशिश की पर वह बाहर ना निकली।


पौ फटते ही ग्रामीणों का दल रस्से लेकर तालाब पर आ गया। वहां पहुंचकर जब उन्होंने देखा कि सारे तालाब को हाथियों ने चारों ओर से घेर रखा है तो उन्हें और भी अनिष्ट की आशंका हो उठी।

उन्होंने आपस में बातचीत की तो एक ने कहा – “अरे भाइयों! मेरी मानो तो फॉरेस्ट विभाग वालों को फोन कर दो। वही आकर इन हाथियों के झुंड को यहां से भगाएंगे।”


दूसरा ने कहा – “तुम ठीक कहते हो भाई! कहीं हम लोगों ने इन्हें हटाकर हथनी को निकालने की कोशिश की तो यह हम लोगों पर ही ना दौड़ पड़ें।”


तीसरे ने कहा – “सही बात है भाइयों! कहीं लेने के देने ही ना पड़ जाएं।”


सभी ने एकमत होकर वन विभाग के अधिकारियों को फोन पर सूचना दे दी। उन्होंने पूरा मंजर अधिकारियों को कह सुनाया कि यहां एक साथ कितने सारे हाथियों की फौज जमा है और एक हथिनी तालाब में है इन्हें भगा कर उसे बाहर निकालना है।


वन विभाग वालों के लिए तो यह आम बात थी। वे आनन-फानन में अपनी एक बड़ी सी टीम लेकर वहां आ पहुंचे। सभी ओर गाड़ियों के सायरन का शोर सुनाई दे रहा था। हाथियों के झुंड ने सायरन की आवाज सुनते ही चिंघाड़ना शुरू कर दिया। वन विभाग वालों ने हवाई फायरिंग की और ढोल धमाकों से शोर किया। ग्रामीणों ने भी इसमें उनका साथ दिया। शोर-शराबा होने पर तथा गोलियों की आवाज से हाथियों के झुंड में खलबली मच गई। वे घेरा तोड़कर भागने लगे।


उन को भागता देख कर वन विभाग वालों ने और अधिक फायरिंग की तथा ढोल नगाड़ों का शोर किया जिससे वे सभी भाग कर दूर चले जाएं, वापस ना आएं। उनका प्लान कामयाब रहा। सुबह से फिर शाम होने लगी। वन विभाग वालों के पसीने छूट गए परंतु सफलता हाथ नहीं लगी। इतने में वह हथिनी बड़े जोर की चिंघाड़ी और अपने स्थान पर ही तालाब में गिर गई।


सभी गाड़ियों की हेडलाइटें जलवाई गईं और अब सारे ग्रामीणों और वन विभाग की टीम ने मिलकर हथिनी के शरीर को रसों और जंजीरों से बांधा तथा क्रेन के माध्यम से बड़ी मशक्कत के बाद किसी तरह तालाब की दलदल से बाहर निकाला।


रात भर हथनी का शव तालाब के बाहर पड़ा रहा।हाथियों के झुंड के लौट कर आ जाने के भय के कारण सभी गाड़ियों की लाइटें सारी रात जला कर रखी गईं। उधर ग्रामीणों ने भी मशालें जलाकर रोशनी का इंतजाम किया और रात भर वन विभाग की टीम के साथ डटे रहे।


रात भर वन विभाग वाले हादसे के बारे में जानकारी लगाते रहे परंतु कोई भी सुराग उनके हाथ नहीं लगा। सुबह होते ही वन विभाग वालों ने हथनी के पोस्टमार्टम की व्यवस्था की। पोस्टमार्टम होने पर पता चला कि मृत हथिनी तो गर्भवती थी।


यही नहीं सबसे अधिक चौंकाने वाली बात तो यह थी कि उसके मृत बच्चे के शरीर पर जगह-जगह फफोले पड़े हुए थे और हथनी के उदर में ढेर सारा फटा हुआ बारूद भरा पड़ा था। ये देखते ही पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के रोंगटे खड़े हो गए कि उस बारूद के साथ ही अनानास के छोटे-छोटे टुकड़े भी उस मादा हाथी के पेट में मिले।


अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि हथिनी की मौत पेट में अनेक पटाखों के फटने और उसमें से निकले जहरीले बारूद और उसके कारण हुए आंतरिक शारीरिक जख्मों के कारण हुई है। हथिनी गर्भवती थी और एक बच्चे को जन्म देने वाली थी। बारूद के विस्फोट के कारण उसकी बच्चेदानी भी फट गई और बच्चा भी पेट में ही मर गया।


अब ग्रामीणों को समझ में आने लगा कि आखिर वह हथिनी सारे गांव में बेचैन होकर क्यों भाग रही थी। उसके पेट में रह-रहकर बारूद के गोले फूट रहे थे और वह बेचारी अपने बच्चे को बचाने के लिए इधर से उधर दौड़ रही थी। इस पर भी शरीर में लगी आग को शांत करने के लिए ही वो शायद तालाब की गहरी दलदल में उतर गई थी। उसमें भी 2 दिन तक वो बेचारी लगातार खड़ी ही रही कि कहीं बैठने के कारण उसका बच्चा उसके पेट में ही न मर जाए।


कुछ व्यक्तियों ने कहा – “कितनी भली थी बेचारी हथिनी कि अपने अंदर बारूद के विस्फोटों के बावजूद भी उसने न तो किसी गांव वाले को नुकसान पहुंचाया और ना ही उनके घरों को। यदि वो चाहती तो क्रोधित हो सभी को तहस-नहस कर सकती थी। यही नहीं रास्ते में बच्चों को देखकर भी उनको लांगती हुई चली गई। किसी का भी कोई नुकसान नहीं किया उसने।


परंतु किसी का क्या बिगाड़ा था उस हथिनी ने जो किसी ने उसके साथ ऐसा किया।”


चूंकि कोई भी सबूत ना मिल सका इस कारण किसी की भी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी। हर किसी की जुबान पर एक ही बात थी कि जिस किसी ने भी ऐसा किया है उसको इसकी सजा जरूर मिलेगी। किसी बेजुबान को सता कर किसी को क्या मिला है।


एक ने कहा – “ऐसा व्यक्ति जिंदा नर पिशाच है जो दूसरों की जिंदगी लेकर मुस्कुराता है। जो किसी को मौत देकर खुश होता हो उसे तो इस दुनिया में रहने का भी अधिकार नहीं। यदि मेरा बस चले तो मैं ऐसे आदमी को गोली मार दूं।”


दूसरे ने कहा – “मात्र गोली से क्या होगा। ऐसे आदमी को तो चौराहे पर खड़ा करके जलती हुई आग में झोंक देना चाहिए। तब उसे पता चलेगा कि किसी की जिंदगी से खेलने का परिणाम क्या होता है।”


तीसरा बोला – “मेरा तो मन कहता है कि उसे किसी पेड़ से बांधकर उस पर शिकारी कुत्ते छोड़ देना चाहिए। जब वे उसकी बोटियां नोच कर खाएंगे तब उसे दूसरे को दी गई पीड़ा का एहसास होगा।”


तभी किसी ने पीछे से कहा – “देख लेना गरीब और बेजुबान की बद्दुआ कभी खाली नहीं जाती। चाहे भले ही कोई कितना भी शातिर और चालाक क्यों ना हो। परंतु ऊपर वाले की निगाह से बच नहीं सकता। देख लेना एक न एक दिन उसको सजा जरूर मिलेगी। उसकी लाठी बे-आवाज होती है। उसके यहां देर है पर अंधेर नहीं। उस मासूम हथिनी की बद्दुआ बेकार नहीं जाएगी। देख लेना एक दिन वो कुत्ते की मौत मरेगा। कोई उसकी लाश तक उठाने नहीं जाएगा।”


वही हुआ अभी कुछ ही दिन बीते थे कि एक साथ कई गाड़ियां सायरन बजाती हुई गांव में आ पहुंचीं। देखते ही देखते पुलिस वालों ने सारा गांव घेर लिया। उन्होंने एक-एक घर की तलाशी लेनी प्रारंभ की और उनके साथ आए स्वास्थ्य विभाग वालों ने जानकारी जुटाना प्रारंभ किया कि यहां पिछले दिनों मुंबई से कौन-कौन आया है।


देखते ही देखते चारों तरफ शोर मच गया कि यहां बाहर से कुछ लोग आए हुए हैं। उन्हें तलाशती हुई पुलिस आई है। क्योंकि वे जिस जगह से आए हैं वहां पर कोरोना महामारी फैली हुई है अतः उन्हें यहां से निकाल कर ले जाएंगे।


कुछ ही देर में स्वास्थ्य विभाग की गाड़ी का सायरन बजने लगा। एक घर के 8 लोग गाड़ियों में भरे गए और उन्हें लेकर स्वास्थ्य विभाग की टीम वहां से चली गई। पुलिस वालों ने उनके घर की दीवार पर कोविड-19 का पोस्टर चस्पा कर दिया। सारे गांव के सैनिटाइजेशन की घोषणा कर दी गई और सारा गांव क्वॉरेंटाइन कर दिया गया। यही नहीं सारे गांव में चप्पे-चप्पे पर पुलिस भी तैनात कर दी गई।


इसी बीच खास बात ये हुई कि जब उस परिवार को गाड़ी में भरकर ले जाया जा रहा था तभी गांव के एक बच्चे ने हाथ की उंगली से मुंबई से आए उस अनजान लड़के की ओर इशारा कर धीरे से अपने पिता के कान में कहा कि इसने ही उस हथिनी को अन्नानास खिलाया था।


कुछ दिनों बाद अखबार में खबर छपी कि मुंबई से आए एक नवयुवक ने सारे गांव में कोरोनावायरस उसके परिवार के सभी लोग कोरोना से बुरी तरह इनफेक्टेड पाए गए हैं रोग की संक्रामकता को देखते हुए डॉक्टरों तक नहीं उनका इलाज करने से हाथ खड़े कर दिए हैं सारा प्रशासन दिन- रात प्रयास कर उनकी जान बचाने की कोशिश कर रहा है।


जैसे तैसे दो दिन और बीते। तीसरे दिन अखबार की हेडलाइंस में छपा था कि लाख प्रयासों के बावजूद भी उस नवयुवक और उसके परिवार वालों को बचाया नहीं जा सका। उनके शव अस्पताल की मोर्चरी में रखे गए हैं। कोई भी उनकी लाश लेने वाला नहीं है। अस्पताल का स्टाफ भी सकते में है और सभी उन लाशों से दूरी बनाए हुए हैं।


आखिरकार पुलिस कर्मियों द्वारा ही उन सीलबंद लाशों को एक स्थान पर मशीन द्वारा ले जाकर इकट्ठा ही आग के हवाले कर दिया गया।


कई दिनों तक गांव में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीमें जांच को आती रहीं। जो लोग भी इन्फेक्टेड होने के शक के दायरे में थे वे सभी प्राथमिक उपचार के बाद घर भेज दिए गए।


उस घर पर आज भी ताला पड़ा है और कोविड-19 का पोस्टर चिपका हुआ है तथा सभी ओर यही चर्चा है कि देख लिया हथनी की मौत का कैसा बदला लिया भगवान ने। कैसे कहर बनकर टूटी उस बेजुबान गर्भवती ‘हथिनी की हाय’ जिसने सब कुछ खाक कर के रख दिया।

-डॉ. जितेंद्र कुमार शर्मा ‘ज्योति’

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