कड़वा नीम
किसने सोचा कभी नीम, बन जाऊँ मैं। सब गुलाबों की ख्वाहिश ही करते रहे।। कौन कहता यहाँ, सच को, सच अब कहाँ। सब.झूठी सिफारिश ही करते रहे।। अपना पन कैसे ढूँढें, अब अपनों में हम। हर दिल में छिपा है, फकत बस है ग़म। है समन्दर ही खारा, बसा दिल … Read More