अखण्ड भारत के शिल्पकार
भारतीय अस्मिता के संवाहक एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के विशाल व्यक्तित्व की ऊंचाई को छू पाना किसी भी भारतीय शिखर पुरुष के लिए सहज संभव नहीं। उनके योगदान और गौरवशालीे अवदान की गाथाएं संपूर्ण संसार में विख्यात हैं। वह भारतीय संस्कृति के मात्र उन्नायक ही नहीं अपितु पालक और पोषक भी थे। वे अपनी मातृभूमि को बालकवत् प्रेम करते थे। भारत के कण-कण में सरदार बल्लभ भाई पटेल का व्यक्तित्व रचा और बसा हुआ दिखलाई देता है। आज उन्हीं के कारण संपूर्ण भारतवर्ष एक दिखलाई देता है। आजादी के पश्चात सैकड़ों रियासतों को एक सूत्र में पिरोने का जो महान कार्य सरदार बल्लभ भाई पटेल ने किया उसकी तुलना असंभव है। भारतीयता की सोंधी सुगंध जो उनके व्यक्तित्व से उद्भासित होती हुई स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, उसी का परिणाम है कि आज गुजरात में भगवान सोमनाथ का गगनचुंबी मंदिर पुनः प्रतिष्ठापित दिखलाई देता है। भारतीय गौरव और अस्मिता की पहचान को बनाए रखने वाले, भारतीयता को उदात्तता प्रदान करने वाले, राष्ट्र गौरव, सरदार वल्लभ भाई पटेल का भारत युगों-युगों तक ऋणी रहेगा। आज नरेंद्र भाई मोदी जी ने उनकी विश्व की सर्वाधिक ऊंची मूर्ति लगवा कर ये सिद्ध कर दिया है कि वास्तव में भारतीय राजनीति के फलक पर सरदार बल्लभ भाई पटेल सरीखे व्यक्तिव के समकक्ष अन्य कोई नहीं। इतनी विशालता और विराटता लिए हुए जो सरदार पटेल का व्यक्तित्व दिखलाई देता है दूूर-दूर तक उसके आसपास कोई दूसरा दिखाई नहीं देता। आज आजादी के इतने वर्षों उपरांत जो सम्मान बल्लभ भाई पटेल को दिया जा रहा है वे निश्चय ही उसके सच्चे अधिकारी हैं। उनके लिए जितना भी सम्मानित किया जाए बहुत कम है। वे एक ऐसा व्यक्तित्व थे जो कि ऊपर से बहुत कठोर दिखलाई देता है परंतु भीतर से अत्यंत कोमल। उनका व्यक्तित्व उस कठोर नारियल की भांति है जो ऊपर से देखने में तो अत्यंत जटिल और कठोर दिखाई देता है परंतु उसके अंदर स्वादु एवं मधुर जल बसता है। इसी प्रकार महामना, महामानव सरदार वल्लभ भाई पटेल के अंत: स्थल में भी भारतीयता के प्रति प्रेम, राष्ट्र के प्रति सजगता, कार्य के प्रति तल्लीनता, कर्तव्यनिष्ठा, सत्य और ईमानदारी जो कि उनके व्यक्तित्व में कूट-कूट कर भरी हुई थी, स्पष्टत: परिलक्षित होती हुई दिखाई देती है। कठोर इतने कि पल भर में हेलीकॉप्टर से टैंक उतारने का आदेश सेना को देने में भी चूकते हैं, तो कोमल इतने कि भारत का प्रथम प्रधानमंत्री चुने जाने के उपरांत भी बड़ी ही सहजता और कोमलता के साथ अपना पद नेहरू के लिए मात्र गांधी जी के कहने पर पल भर में ही छोड़ देते हैं। इतना बड़ा महान कार्य मात्र सरदार बल्लभ भाई पटेल ही कर सकते हैं। उनका व्यक्तित्व बहुत अधिक विराटता लिए हुए है, जिस कारण मात्र भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में भी विभिन्न स्थानों पर उनके विग्रह स्थापित किए जा चुके हैं। उनकी कर्तव्य निष्ठा को देखते हुए अनेक विश्वविद्यालयों में उन पर छात्र अध्ययन भी करते हैं। वे मात्र भारतीयता का ही प्रतिनिधित्व नहीं करते अपितु वे भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति का भी पुरजोर तरीके से समर्थन करते हुए दिखाई देते हैं। उनकी दृष्टि में राष्ट्र धर्म ही सर्वोपरि है। क्योंकि धर्म ही व्यक्ति को कर्तव्यनिष्ठ बनाता है, सजगता प्रदान करता है और पूर्ण ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों के पालन की ओर अग्रसर करता है, इसलिए उनकी दृष्टि में ‘धर्मो रक्षति रक्षिता:’ का सिद्धांत पूरी तरह अनुपालित किया जाना चाहिए। क्योंकि धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है और यहां धर्म का अर्थ व्यापक रूप में व्यक्ति के कर्तव्यों से है। उन कर्तव्यों से जिनका अनुपालन उसके लिए आवश्यक ही नहीं अपितु उसका नैतिक दायित्व है। और जो व्यक्ति इससे च्युत होता है वो निश्चित ही विनाश को प्राप्त होता है। सरदार वल्लभभाई पटेल अपने समकालीन राजनेताओं महामना मदन मोहन मालवीय, गोपाल चंद्र गोखले, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, डॉ राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि में अपनी अलग ही पहचान बनाने में सफल रहे हैं। वह ऐसे राजनेता रहे हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में तो महती भूमिका निभाई ही अपितु आजादी के पश्चात भी स्वतंत्र भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। योगदान भी ऐसा जिसे भारत की भावी पीढ़ियां कभी चाह कर भी विस्मृत नहीं कर सकेंगी।