उधारी की बीमारी

अपने बड़े बुज्रुर्गों से कदाचित सुना होगा कि –“एक समय भूखे रह लेना लेकिन उधार की रोटी न खाना।”

मेरा हमारे रीति रिवाज तथा मान्यताओं में बहुत गहरा विश्वास है क्योकि हमारे संस्कार न केवल हमे जीने का एक सही ढंग सिखाते है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी हमारे लिए किसी राम बाण इलाज से कम नहीं है। ऐसे में उन्ही बुज्रुर्गों की बातो की समीक्षा करते हुए कुछ बिंदुंओ को आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहूंगा। आशा करता हूँ की कही न कही आप मेरे से सरोकार रखते हुए खुद को चित्रित कर पाएंगे क्योकि मेरे ये विचार आज के इस मतलबी संसार में अपने अस्तित्व को बचाये रखने की लड़ाई से उत्प्रेरित है, जिस रण-भूमि में हम सब कही न कही अपने अपने संघर्षो का सामना कर रहे है।

चलिए देखते है – ‘ उधारी की अद्भुद बीमारी को ‘

यूं तो प्रभु किसी के साथ अन्याय नहीं करते। सबको बराबर देके भेजा है इस संसार में उन्होंने। लेकिन अलग अलग द्रष्टा की नज़रो से देखने पर वो सम्पदा कभी कम तो कभी ज्यादा महसूस होने लगती है जिसके पीछे का मुख्य कारण है- मनुष्य के द्वारा खुद की कमियों को खूब बढ़ा चढ़ा कर देखना।
एक उदहारण देख लेते है। जैसे :

एक हाथ -पैर से दुरुस्त इंसान है जिसे भगवान ने शारीरिक सुख तो दिया किन्तु उसके बदले धन थोड़ा कम दिया। वही एक दूसरा इंसान है जो की बहुत धन सम्पदावान है किन्तु वो दोनों पैरों को लकवा मार जाने के कारण चल फिर नहीं सकता और अक्सर बीमार भी रहता है। ये दोनों बचपन में गाँव के एक ही स्कूल में साथ में ही पढ़े थे तो अच्छे दोस्त बन गए थे क्योकि बचपन बड़ा भोला होता है। उसको कहा इन सब पदार्थवादी चीज़ो की समझ होती है। किन्तु अब जब ये दोनों बड़े हो गए तो ये दोनों एक दूसरे को देख के अपने जीवन से खुश नहीं है और ईश्वर को दोष देकर कहते है – “हे प्रभु ! क्यों तूने मुझे उसके जैसा जीवन नहीं दिया। “
गरीब कहता है -“क्यों मुझे धन सम्पदा नहीं दी? क्यों मुझे गरीब बनाया?” और दोनों पैरो से लाचार व्यक्ति कहता है -” क्या फायदा ऐसी धन दौलत का अगर शरीर ही साथ नहीं दे तो। मेरा शरीर सही हो जाये तो उसके बदले चाहे मेरी सब धन दौलत ले लो। “

तो देखा आपने केवल दृष्टि-दृष्टि की बात है। हम सब सामान है। भगवान की सभा में किसी को ज्ञान ज्यादा मिला, किसी को धन, किसी को शरीर, किसी को परिवार, किसी को प्यार आदि। और इन सब अधिक चीज़ो के बदले में भगवान ने बाकि चीज़ो में थोड़ी कटौती कर ली तो क्या गुनाह किया। अरे भाई हम भी जब सामान लेने जाते है तो यही करते है न बाजार में। एक आदमी अपनी दहाड़ी अपने व्यसनों ( सिगरेट, दारू आदि ) में उड़ा देता है जिसकी वजह से उसके बच्चो को उस दिन आधे पेट ही सोना पड़ता है जबकि अगले दिन वही दहाड़ी जब गृहलक्ष्मी के हाथ लगती है तो रसोई से व्यंजनों की खुशबू आने लग जाती है। बात सीधी है कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ेगा ही।

उधार लेने की प्रक्रिया वही से शुरू हो जाती है जहाँ से इंसान खुद की खूबियों को देखना छोड़ कमियों पर काम करने लगता है। भौतिक संसार में मूलतया हम धन या किसी वस्तु को कुछ समय के लिए लेने को उधार की संज्ञा देते है।
अब देखिये जिसके पास धन की कमी है और कोई बहुत ज़रूरी काम ( जिसके बिना जीना मुश्किल हो जाये और यहाँ मैं किसी व्यसन की बात नहीं कर रहा हूँ ) रुका हो तो वह उधार ले तो ठीक भी लगता है। अपने ऐसे समय के लिए ही काम आते है। और ऐसे लोग समय से पहले ही उधारी खत्म करने में भी विश्वास रखते है क्योकि वो देने वाले की ज़रूरतों को भी अपनी ज़रूरतों जैसा समझते है और उसकी सहायता के लिए कृतज्ञता भी ज्ञापित करते है।

किन्तु आज के समय में अपने देखा होगा की लोग अपने हितेषियों से उन चीज़ो को खरीदने के लिए पैसे उधार ले रहे है जो बस उनका शौख मात्र है , न की जीवन की कोई बहुत बड़ी आवश्यकता। अब आप ये मत कहियेगा जनाब की शौख बड़ी चीज़ है। क्योकि अगर वो आपके लिए इतनी बड़ी चीज़ होती तो उसकी पूर्ति के लिए जी-जान लगा कर मेहनत की जाती। कही न कही के खर्चे कम किये जाते ताकि पैसे इक्कठा करके शौख पूरे किये जा सके। अब भला ये क्या बात हुई की दोस्त रिश्तेदार से अपनी ज़रुरत बता कर पैसे ले आये जो की शायद उन्होंने किसी प्रतिकूल परिस्थिति के लिए जोड़ के रखे हो। या चलो उनके पास पर्याप्त धन हो भी तब भी तो बैंक या किसी बचत स्कीम में लगा के उस परब्याज ही मिलता जो अब भाईचारे में 0 हो गया है।

देखा जाये तो किसी से ऋण लेने पर न केवल हम भावनात्मक रूप से किसी की उदारता का लाभ उठा रहे होते है बल्कि भौतिक रूप से भी वो उस ब्याज की कभी न मिली रकम के रूप में भी आपके प्रति अपने प्रेम और वात्सल्य को बरसा रहा होता है। हमे उसका मन से आभारी होना चाहिए और उसकी विपदा की घड़ी में भी खड़े रहने का प्रयास करना चाहिए।

लेकिन होता क्या है? इसका विपरीत। कर्ज देने वाला अपने ही पैसे को भीख मांगने की तरह मज़बूर हो जाता है क्योकि जिस इंसान ने बस अपने शौख की पूर्ति के लिए किसी से पैसे लिए हो वो भला किसी की आवश्यकता को क्या समझेगा। फिर जब ऐसी ठोखर खाये हुए सज्जन लोग किसी की सहायता पीछे हटते है तो हम उन्हें तुच्छ मानसिकता वाला और निष्ठुर समझ लेते है। हम ये कहने से भी पीछे नहीं हटते की -‘मनुष्य की मनुष्यता ही समाप्त हो गयी है।’ पर क्या ये उचित है ? क्योकि हमने बस आज की परिस्थिति देखी और उसने अपने साथ हुआ दुर्व्यवहार।

मैं अपने समस्त पाठको से कहना चाहूंगा की ऐसे लोगो को कभी अपनी बचत के रुपए न दे जो बस उनसे अपने शौख पुरे करना चाहता हो। अनुज या परिवार की कोई ज़िम्मेदारी हो तो बात अलग है। वो कहावत भी है न -” शौख तो माँ बाप के पैसे से पुरे किये जाते है ,अपने पैसो से तो बस ज़रूरते पूरी होती है। “

ऐसे उधार लेने की आदत वाले पाठको से भी विनम्र निवेदन है की किसी के प्रेम और अच्छाई का फायदा इस हद तक न उठाये की उस बेचारे का अच्छाई पर से ही विश्वास उठ जाये। क्योकि आपके शौख और बेफिजूल के खर्चों से ज्यादा ज़रूरी चीज़े भी है लोगो के जीवन में जिसके लिए वो बचत करता है, अपनी इच्छाये मारता है। उसके त्याग का सम्मान करे और अपने शौख को अपनी बचत से पूरा करने का प्रयास करे।

आपका साथी
विवेक

One thought on “उधारी की बीमारी

Leave a Reply to Shree varshney Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *