वैराग्य वाणी
वैराग्य वाणी
राम नाम का जगत में, है अनुपम प्रताप।
जाके बल ते मिटत हैं, पाप, ताप, संताप।।
निर्गुण की महिमा अमित, सगुण रूप भयो आप।
भगतन हित खुद देह धर, जग से मिटावें पाप।।
जो जाणै सो पाव है, प्रभु की कृपा अपार।
सारे जगत का है वही, एक मूल आधार।।
जो आए सो जाएंगे, कौन रहा चहुं काल।
काल बांध लै जाएगा, स्वयं आपनी चाल।।
मन की बात ना मानिए, चंचल गति अपार।
मन की करते मर मिटे, राजे रंक अपार।।
मैं-मैं करता क्यों मरे, जोड़े धन क्यों अपार।
जगत डगर है मौत की, जाणा है उस पार।।
उसकी शक्ति अतुल है, वो निर्गुण निर्विकार।
उसके बल से चल रहा, ये सारा संसार।।
उसके रूप अनूप हैं, विपुल रूप की खान।
हर प्राणी में ही दिखे, उसका रूप महान।।
उसके बल से चल रहा, जगत क्रिया व्यापार।
कण-कण में है हो रहा, उसका ही संचार।।
उसकी ज्योति है जली सबके अंक समान।
‘ज्योति’ ‘ज्योति’ में जा मिले, मिटे देह का भान।।डॉ. जितेंद्र कुमार शर्मा 'ज्योति'