चार दिन की ज़िंदगानी
जब जिंदगानी चार दिन की रह गई।किस लिए अब फासले मिटाते हो।।रहने दो दीवार अब यूं ही खड़ी।किस लिए इसे आप अब गिराते हो।।एक ये ही तो बनी पहचान है।प्यार की अविरल हमारे आपके।।रहने दो इसको खड़ी हूं ही सदा।किसलिए बेवक्त ही गिराते हो।।इस पे हैं दोनों तरफ लिक्खी गई।प्यार … Read More